भोपाल। मध्य प्रदेश की उच्च शिक्षा व्यवस्था में प्रयोगशालाओं की हालत बदतर होती जा रही है। प्रदेश के सरकारी कॉलेजों में पिछले दस वर्षों से लैब टेक्नीशियनों की कोई भर्ती नहीं की गई है। इस कारण 587 पद अब भी रिक्त हैं, जिससे विज्ञान की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। इस गंभीर स्थिति के चलते छात्रों की प्रैक्टिकल शिक्षा अधूरी रह जा रही है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को लागू करने की दिशा में राज्य सरकार कई बड़े कदम उठा रही है, लेकिन प्रयोगशालाओं की दुर्दशा इस दिशा में बड़ी बाधा बनकर सामने आ रही है। वर्तमान में प्रदेश के विभिन्न शासकीय महाविद्यालयों में केवल 680 लैब टेक्नीशियन कार्यरत हैं, जबकि स्वीकृत पदों की संख्या 1267 है। यानी 587 पद अब भी खाली हैं।
MP Govt Job 2025 New Update हर दिन देखें
व्यवस्था पर भारी काम का बोझ
प्रयोगशालाओं में काम का दबाव इतना ज्यादा है कि कई कॉलेजों में दो टेक्नीशियन को छह-छह लैब्स का जिम्मा सौंपा गया है। उदाहरण के तौर पर एमवीएम कॉलेज में मात्र दो टेक्नीशियन पूरे विभाग को संभाल रहे हैं। भोपाल स्थित भेल में भी तीन पदों में से दो रिक्त हैं।
पिछली भर्ती 2012 में, अब तक कोई प्रयास नहीं
प्रयोगशाला तकनीशियनों की अंतिम बार भर्ती वर्ष 2012 में की गई थी। तब से अब तक नए सिरे से किसी भी प्रकार की भर्तियां नहीं की गई हैं। राज्य के उच्च शिक्षा विभाग के आंकड़ों के अनुसार, पूरे प्रदेश में 4215 स्वीकृत पदों में से 2203 प्रयोगशाला परिचारकों के भी पद खाली हैं।
कॉलेजों में पढ़ाई का स्तर गिरा
राजधानी सहित अन्य शहरों के कॉलेजों की स्थिति भी चिंताजनक है। गोविंदपुरा स्थित गवर्नमेंट गर्ल्स कॉलेज में विज्ञान संकाय की पढ़ाई के लिए एक भी लैब टेक्नीशियन नहीं है। वहीं कई अन्य कॉलेजों में प्रयोगशाला सहायक और अटेंडर भी नहीं हैं। इससे छात्रों को न केवल पढ़ाई में परेशानी होती है बल्कि व्यावसायिक और प्रयोगात्मक ज्ञान भी प्रभावित हो रहा है।
क्या करते हैं प्रयोगशाला तकनीशियन और परिचारक?
प्रयोगशाला तकनीशियन का कार्य न केवल उपकरणों की देखरेख करना होता है, बल्कि वे छात्रों को प्रैक्टिकल करने में मदद करते हैं, रसायनों को संभालते हैं, और लैब की संपूर्ण व्यवस्था बनाए रखते हैं। वहीं प्रयोगशाला परिचारक लैब को साफ-सुथरा रखना, उपकरणों और सामग्री की आपूर्ति सुनिश्चित करना और आवश्यकतानुसार शिक्षक एवं तकनीशियन की सहायता करना शामिल है।
निष्कर्ष
राज्य सरकार को जल्द से जल्द खाली पड़े पदों पर भर्ती प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए। लैब टेक्नीशियन और परिचारकों की कमी से न केवल शिक्षण व्यवस्था चरमरा रही है, बल्कि छात्रों का भविष्य भी दांव पर लग रहा है। यदि एनईपी को सफल बनाना है, तो मूलभूत ढांचे को दुरुस्त करना अब समय की सबसे बड़ी मांग बन चुकी है।